जैन धर्म में सबसे उत्तम पर्व है पर्युषण। यह सभी पर्वों का राजा है। इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है, जिसमें तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है। पर्युषण पर्व को आध्यात्मिक दीवाली की भी संज्ञा दी गई है। जिस तरह दीवाली पर व्यापारी अपने संपूर्ण वर्ष का आय-व्यय का पूरा हिसाब करते हैं, गृहस्थ अपने घरों की साफ- सफाई करते हैं, ठीक उसी तरह पर्युषण पर्व के आने पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अपने वर्ष भर के पुण्य पाप का पूरा हिसाब करते हैं। वे अपनी आत्मा पर लगे कर्म रूपी मैल की साफ-सफाई करते हैं।
पर्युषण आत्म जागरण का संदेश देता है और हमारी सोई हुई आत्मा को जगाता है। यह आत्मा द्वारा आत्मा को पहचानने की शक्ति देता है। इस दौरान व्यक्ति की संपूर्ण शक्तियां जग जाती हैं। पर्युषण का अर्थ है – ‘ परि ‘ यानी चारों ओर से , ‘ उषण ‘ यानी धर्म की आराधना। पर्युषण अर्थात आत्मा के पास बैठो और उसकी सार – संभाल करो। वर्ष भर के सांसारिक क्रिया – कलापों के कारण उसमें जो दोष चिपक गया है , उसे दूर करने का प्रयास करो। शरीर के पोषण में तो हम पूरा वर्ष व्यतीत कर देते हैं। पर्युषण के आठ दिनों में हम शरीर के राजा अर्थात आत्मा की ओर ध्यान दें।